Friday, 30 November 2012

HIJAB inISLAM

प्रश्नः3.‘‘इस्लाम औरतों को पर्दे में रखकर उनका अपमान क्यों करता है?

मुसलमान औरतों के लिये हिजाब (पर्दा)
प्रश्नः ‘‘इस्लाम औरतों को पर्दे में रखकर उनका अपमान क्यों करता है?
उत्तरः विधर्मी मीडिया विशेष रूप से इस्लाम में स्त्रियां को लेकर समय समय पर आपत्ति और आलोचना करता रहता है। हिजाब अथवा मुसलमान स्त्रियों के वस्त्रों (बुर्का) इत्यादि को अधिकांश ग़ैर मुस्लिम इस्लामी कानून के तहत महिलाओं का ‘अधिकार हनन’ ठहराते हैं। इससे पहले कि हम इस्लाम में स्त्रियों के पर्दे पर चर्चा करें, यह अच्छा होगा कि इस्लाम के उदय से पूर्व अन्य संस्कृतियों में नारी जाति की स्थिति और स्थान पर एक नज़र डाल ली जाए।
अतीत में स्त्रियों को केवल शारीरिक वासनापूर्ति का साधन समझा जाता था और उनका अपमान किया जाता था। निम्नलिखित उदाहरणों से यह तथ्य उजागर होता है कि इस्लाम के आगमन से पूर्व की संस्कृतियों और समाजों में स्त्रियों का स्थान अत्यंत नीचा था और उन्हें समस्त मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया था।
बाबुल (बेबिलोन) संस्कृति में
प्राचीन बेबिलोन संस्कृति में नारीजाति को बुरी तरह अपमानित किया गया था। उन्हें समस्त मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया था। मिसाल के तौर पर यदि कोई पुरुष किसी की हत्या कर देता था तो मृत्यु दण्ड उसकी पत्नी को मिलता था।
यूनानी (ग्रीक) संस्कृति में
प्राचीन काल में यूनानी संस्कृति को सबसे महान और श्रेष्ठ माना जाता है। इसी ‘‘श्रेष्ठ’’ सांस्कृतिक व्यवस्था में स्त्रियों को किसी प्रकार का अधिकार प्राप्त नहीं था। प्राचीन यूनानी समाज में स्त्रियों को हेय दृष्टि से देखा जाता था। यूनानी पौराणिक साहित्य में ‘‘पिंडौरा’’ नामक एक काल्पनिक महिला का उल्लेख मिलता है जो इस संसार में मानवजाति की समस्त समस्याओं और परेशानियों का प्रमुख कारण थी, यूनानियों के अनुसार नारी जाति मनुष्यता से नीचे की प्राणी थी और उसका स्थान पुरूषों की अपेक्षा तुच्छतम था, यद्यपि यूनानी संस्कृति में स्त्रियों के शील और लाज का बहुत महत्व था तथा उनका सम्मान भी किया जाता था, परन्तु बाद के युग में यूनानियों ने पुरूषों के अहंकार और वासना द्वारा अपने समाज में स्त्रियों की जो दुर्दशा की वह यूनानी संस्कृति के इतिहास में देखी जा सकती है। पूरे यूनानी समाज में देह व्यापार समान्य बात होकर रह गई थी।
रोमन संस्कृति में
जब रोमन संस्कृति अपने चरमोत्कर्ष पर थी तो वहाँ पुरूषों को यहाँ तक स्वतंत्रता प्राप्त थी कि पत्नियों की हत्या तक करने का अधिकार था। देह व्यापार और व्यभिचार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं था।
प्राचीन मिस्री संस्कृति में
मिस्र की प्राचीन संस्कृति को विश्व की आदिम संस्कृतियों में सबसे उन्नत संस्कृति माना जाता है। वहाँ स्त्रियों को शैतान का प्रतीक माना जाता था।
इस्लाम से पूर्व अरब में
अरब में इस्लाम के प्रकाशोदय से पूर्व स्त्रियों को अत्यंत हेय और तिरस्कृत समझा जाता था। आम तौर पर अरब समाज में यह कुप्रथा प्रचलित थी कि यदि किसी के घर कन्या का जन्म होता तो उसे जीवित दफ़न कर दिया जाता था। इस्लाम के आगमन से पूर्व अरब संस्कृति अनेकों प्रकार की बुराइयों से बुरी तरह दूषित हो चुकी थी।
इस्लाम की रौशनी
इस्लाम ने नारी जाती को समाज में ऊँचा स्थान दिया, इस्लाम ने स्त्रियों को पुरूषों के समान अधिकार प्रदान किये और मुसलमानों को उनकी रक्षा करने का निर्देश दिया है। इस्लाम ने आज से 1400 वर्ष पूर्व स्त्रियों को उनके उचित अधिकारों के निर्धारण का क्रांतिकारी कष्दम उठाया जो विश्व के सांकृतिक और समाजिक इतिहास की सर्वप्रथम घटना है। इस्लाम ने जो श्रेष्ठ स्थान स्त्रियों को दिया है उसके लिये मुसलमान स्त्रियों से अपेक्षा भी करता है कि वे इन अधिकारों की सुरक्षा भी करेंगी।
पुरूषों के लिए हिजाब (पर्दा)
आम तौर से लोग स्त्रियों के हिजाब की बात करते हैं परन्तु पवित्र क़ुरआन में स्त्रियों के हिजाब से पहले पुरूषों के लिये हिजाब की चर्चा की गई है। (हिजाब शब्द का अर्थ है शर्म, लज्जा, आड़, पर्दा, इसका अभिप्राय केवल स्त्रियों के चेहरे अथवा शरीर ढांकने वाले वस्त्र, चादर अथवा बुरका इत्यादि से ही नहीं है।)
पवित्र क़ुरआन की सूरह ‘अन्-नूर’ में पुरूषों के हिजाब की इस प्रकार चर्चा की गई हैः
‘‘हे नबी! ईमान रखने वालों (मुसलमानों) से कहो कि अपनी नज़रें बचाकर रखें और अपनी शर्मगाहों की रक्षा करें। यह उनके लिए ज़्यादा पाकीज़ा तरीका है, जो कुछ वे करते हैं अल्लाह उससे बाख़बर रहता है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 24:30)
इस्लामी शिक्षा में प्रत्येक मुसलमान को निर्देश दिया गया है कि जब कोई पुरूष किसी स्त्री को देख ले तो संभवतः उसके मन में किसी प्रकार का बुरा विचार आ जाए अतः उसे चाहिए कि वह तुरन्त नज़रें नीची कर ले।
स्त्रियों के लिए हिजाब
पवित्र क़ुरआन में सूरह ‘अन्-नूर’ में आदेश दिया गया हैः
‘‘हे नबी! मोमिन औरतों से कह दो, अपनी नज़रें बचा कर रखें और अपनी शर्मगाहों की सुरक्षा करें, और अपना बनाव-श्रंगार न दिखाएं, सिवाय इसके कि वह स्वतः प्रकट हो जाए और अपने वक्ष पर अपनी ओढ़नियों के आँचल डाले रहें, वे अपना बनाव-श्रंगार न दिखांए, परन्तु उन लोगों के सामने पति, पिता, पतियों के पिता, पुत्र...।’’ (पवित्र क़ुरआन, 24:31)
हिजाब की 6 कसौटियाँ
पवित्र क़ुरआनके अनुसार हिजाब के लिए 6 बुनियादी कसौटियाँ अथवा शर्तें लागू की गई हैं।
1. सीमाएँ (Extent):प्रथम कसोटी तो यह है कि शरीर का कितना भाग (अनिवार्य) ढका होना चाहिए। पुरूषों और स्त्रियों के लिये यह स्थिति भिन्न है। पुरूषों के लिए अनिवार्य है कि वे नाभी से लेकर घुटनों तक अपना शरीर ढांक कर रखें जबकि स्त्रियों के लिए चेहरे के सिवाए समस्त शरीर को और हाथों को कलाईयों तक ढांकने का आदेश है। यदि वे चाहें तो चेहरा और हाथ भी ढांक सकती हैं। कुछ उलेमा का कहना है कि हाथ और चेहरा शरीर का वह अंग है जिनको ढांकना स्त्रियों के लिये अनिवार्य है अर्थात स्त्रियों के हिजाब का हिस्सा है और यही कथन उत्तम है। शेष पाँचों शर्तें स्त्रियों और पुरूषों के लिए समान हैं।
2. धारण किए गये वस्त्र ढीले-ढाले हों, जिससे अंग प्रदर्शन न हो (मतलब यह कि कपड़े तंग, कसे हुए अथवा ‘‘फ़िटिंग’’ वाले न हों।
3. पहने हुए वस्त्र पारदर्शी न हों जिनके आर पार दिखाई देता हो।
4. पहने गए वस्त्र इतने शोख़, चटक और भड़कदार न हों जो स्त्रियों को पुरूषों और पुरूषों को स्त्रियों की ओर आकर्षित करते हों।
5. पहने गए वस्त्रों का स्त्रियों और पुरूषों से भिन्न प्रकार का होना अनिवार्य है अर्थात यदि पुरूष ने वस्त्र धारण किये हैं तो वे पुरूषों के समान ही हों, स्त्रियों के वस्त्र स्त्रियों जैसे ही हों और उन पर पुरूषों के वस्त्रों का प्रभाव न दिखाई दे। (जैसे आजकल पश्चिम की नकल में स्त्रियाँ पैंट-टीशर्ट इत्यादि धारण करती हैं। इस्लाम में इसकी सख़्त मनाही है, और मुसलमान स्त्रियों के लिए इस प्रकार के वस्त्र पहनना हराम है।
6. पहने गए वस्त्र ऐसे हों कि जिनमें ‘काफ़िरों’ की समानता न हो। अर्थात ऐसे कपड़े न पहने जाएं जिनसे (काफ़िरों के किसी समूह) की कोई विशेष पहचान सम्बद्ध हो। अथवा कपड़ों पर कुछ ऐसे प्रतीक चिन्ह बने हों जो काफ़िरों के धर्मों को चिन्हित करते हों।
हिजाब में पर्दें के अतिरिक्त कर्म और 
आचरण भी शामिल है



HIJAB IN HINDUISM

Rig Veda Book no. 8 Hymn no. 33 V. no. 19:

“When Brahma has made you a woman, you should lower your gaze and should not look up. You should put your feet together and you should not reveal what the garment and the veil conceals.”

Rig Veda Book no. 10 Hymn no. 85 V. no.30:

“Unlovely is the person is the husband who covers his thighs with the garment of his wife.”


Mahavir Charitra Act 2 Page 71:

When Purshuram comes, Rama tells his wife Sita that “He is our elder, please lower your gaze, and put on the veil.”


If you read historical books, the books talking about the Coin Age, the Age of the Gupta and the post Gupta age, there are coins , on which there are pictures of the Indian woman wearing the veils and the veil are going up to their shoulders, some go up to the arms. There are many Indian women in the villages who wear the veils; some of the women even cover their faces.






लिबास में उपरौक्त 6 शर्तों के अतिरिक्त सम्पूर्ण ‘हिजाब’ में पूरी नैतिकता, आचरण, रवैया और हिजाब करने वाले की नियत भी शामिल है। यदि कोई व्यक्ति केवल शर्तों के अनुसार वस्त्र धारण करता हे तो वह हिजाब के आदेश पर सीमित रूप से ही अमल कर रहा होगा। लिबास के हिजाब के साथ ‘आँखों का हिजाब, दिल का हिजाब, नियत और अमल का हिजाब भी आवश्यक है। इस (हिजाब) में किसी व्यक्ति का चलना, बोलना और आचरण तथा व्यवहार सभी कुछ शामिल है।
हिजाब स्त्रियों को छेड़छाड़ से बचाता है
स्त्रियों के लिये हिजाब क्यों अनिवार्य किया गया है? इसका एक कारण पवित्र क़ुरआन के सूरह ‘‘अहज़ाब’’ में इस प्रकार बताया गया हैः
‘‘हे नबी! अपनी पत्नियों और बेटियों और ईमान रखने वाले (मुसलमानों) की स्त्रियों से कह दो कि अपनी चादरों के पल्लू लटका लिया करें, यह मुनासिब तरीका है ताकि वे पहचान ली जाएं, और न सताई जाएं। अल्लाह ग़फूर व रहीम (क्षमा करने वाला और दयावान) है। (पवित्र क़ुरआन , 33:59)
पवित्र क़ुरआन की इस आयत से यह स्पष्ट है कि स्त्रियों के लिये पर्दा इस कारण अनि‍वार्य किया गया ताकि वे सम्मानित ढंग से पहचान ली जाएं और छेड़छाड़ से भी सुरक्षित रह सकें।
जुड़वाँ बहनों की मिसाल
‘‘मान लीजिए कि दो जुड़वाँ बहनें हैं, जो समान रूप से सुन्दर भी हैं। उनमें एक ने पूर्णरूप से इस्लामी हिजाब किया हुआ है, उसका सारा शरीर (चादर अथवा बुरके से) ढका हुआ है। दूसरी जुड़वाँ बहन ने पश्चिमी वस्त्र धारण किये हुए हैं, अर्थात मिनी स्कर्ट अथवा शाटर्स इत्यादि जो पश्चिम में प्रचलित सामान्य परिधान है। अब मान लीजिए कि गली के नुक्कड़ पर कोई आवारा, लुच्चा लफ़ंगा या बदमाश बैठा है, जो आते जाते लड़कियों को छेड़ता है, ख़ास तौर पर युवा लड़कियों को। अब आप बताईए कि वह पहले किसे तंग करेगा? इस्लामी हिजाब वाली लड़की को या पश्चिमी वस्त्रों वाली लड़की को?’’
ज़ाहिर सी बात है कि उसका पहला लक्ष्य वही लड़की होगी जो पश्चिमी फै़शन के कपड़ों में घर से निकली है। इस प्रकार के आधुनिक वस्त्र पुरूषों के लिए प्रत्यक्ष निमंत्रण होते हैं। अतः यह सिद्ध हुआ कि पवित्र कुरआन ने बिल्कुल सही फ़रमाया है कि ‘‘हिजाब लड़कियों को छेड़छाड़ इत्यादि से बचाता है।’’
दुष्कर्म का दण्ड, मृत्यु
इस्लामी शरीअत के अनुसार यदि किसी व्यक्ति पर किसी विवाहित स्त्री के साथ दुष्कर्म (शारीरिक सम्बन्ध) का अपराध सिद्ध हो जाए तो उसके लिए मृत्युदण्ड का प्रावधान है। बहुतों को इस ‘‘क्रूर दण्ड व्यवस्था’’ पर आश्चर्य है। कुछ लोग तो यहाँ तक कह देते हैं कि इस्लाम एक निर्दयी और क्रूर धर्म है, नऊजुबिल्लाह (ईश्वर अपनी शरण में रखे) मैंने सैंकड़ो ग़ैर मुस्लिम पुरूषों से यह सादा सा प्रश्न किया कि ‘‘मान लें कि ईश्वर न करे, आपकी अपनी बहन, बेटी या माँ के साथ कोई दुष्कर्म करता है और उसे उसके अपराध का दण्ड देने के लिए आपके सामने लाया जाता है तो आप क्या करेंगे?’’ उन सभी का यह उत्तर था कि ‘‘हम उसे मार डालेंगे।’’ कुछ ने तो यहाँ तक कहा, ‘‘हम उसे यातनाएं देते रहेंगे, यहाँ तक कि वह मर जाए।’’ तब मैंने उनसे पूछा, ‘‘यदि कोई व्यक्ति आपकी माँ, बहन, बेटी की इज़्ज़त लूट ले तो आप उसकी हत्या करने को तैयार हैं, परन्तु यही दुर्घटना किसी अन्य की माँ, बहन, बेटी के साथ घटी हो तो उसके लिए मृत्युदण्ड प्रस्तावित करना क्रूरता और निर्दयता कैसे हो सकती है? यह दोहरा मानदण्ड क्यों है?’’
स्त्रियों का स्तर ऊँचा करने का 
पश्चिमी दावा निराधार है
नारी जाति की स्वतंत्रता के विषय में पश्चिमी जगत की दावेदारी एक ऐसा आडंबर है जो स्त्री के शारीरिक उपभोग, आत्मा का हनन तथा स्त्री को प्रतिष्ठा और सम्मान से वंचित करने के लिए रचा गया है। पश्चिमी समाज का दावा है कि उसने स्त्री को प्रतिष्ठा प्रदान की है, वास्तविकता इसके विपरीत है। वहाँ स्त्री को ‘‘आज़ादी’’ के नाम पर बुरी तरह अपमानित किया गया है। उसे ‘‘मिस्ट्रेस’’ (हर प्रकार की सेवा करने वाली दासी) तथा ‘‘सोसाइटी बटरफ़्लाई’’ बनाकर वासना के पुजारियों तथा देह व्यापारियों का खिलौना बना दिया गया है। यही वे लोग हैं जो ‘‘आर्ट’’ और ‘‘कल्चर’’ के पर्दों में छिपकर अपना करोबार चमका रहे हैं।
अमरीका मे बलात्कार की दर सर्वाधिक है
संयुक्त राज्य अमरीका (U.S.A.)को विश्व का सबसे अधिक प्रगतिशील देश समझा जाता है। परन्तु यही वह महान देश है जहाँ बलात्कार की घटनाएं पूरे संसार की अपेक्षा सबसे अधिक होती हैं। एफ़.बी.आई की रिपोर्ट के अनुसार 1990 ई. में केवल अमरीका में प्रति दिन औसतन 1756 बलात्कार की घटनाएं हुईं। उसके बाद की रिपोर्टस में (वर्ष नहीं लिखा) प्रतिदिन 1900 बलात्कार काण्ड दर्ज हुए। संभवतः यह आंकड़े 1992, 1993 ई. के हों और यह भी संभव है कि इसके बाद अमरीकी पुरूष बलात्कार के बारे में और ज़्यादा ‘‘बहादुर’’ हो गए हों।

‘‘वास्तव में अमरीकी समाज में देह व्यापार को कषनूनी दर्जा हासिल है। वहाँ की वेश्याएं सरकार को विधिवत् टेक्स देती हैं। अमरीकी कानून में ‘बलात्कार’ ऐसे अपराध को कहा जाता है जिसमें शारीरिक सम्बन्ध में एक पक्ष (स्त्री अथवा पुरूष) की सहमति न हो। यही कारण है कि अमरीका में अविवाहित जोड़ों की संख्या लाखों में है जबकि स्वेच्छा से व्याभिचार अपराध नहीं माना जाता। अर्थात इस प्रकार के स्वेच्छाचार और व्यभिचार को भी बलात् दुष्कर्म की श्रेणी में लाया जाए तो केवल अमरीका में ही लाखों स्त्री-पुरूष ‘‘ज़िना’’ जैसे महापाप में संलग्न हैं।’’ (अनुवादक)

ज़रा कल्पना कीजिए कि अमरीका में इस्लामी हिजाब की पाबन्दी की जाती है जिसके अनुसार यदि किसी पुरूष की दृष्टि किसी परस्त्री पर पड़ जाए तो वह तुरंत आँखें झुका ले। प्रत्येक स्त्री पूरी तरह से इस्लामी हिजाब करके घर से निकले। फिर यह भी हो कि यदि कोई पुरूष बलात्कार का दोषी पाया जाए तो उसे मृत्युदण्ड दिया जाए, मैं आपसे पूछता हूँ कि ऐसे हालात में अमरीका में बलात्कार की दर बढ़ेगी, सामान्य रहेगी अथवा घटेगी?
इस्लीमी शरीअत के लागू होने से बलात्कार घटेंगे
यह स्वाभाविक सी बात है कि जब इस्लामी शरीअत का कानून लागू होगा तो उसके सकारात्मक परिणाम भी शीध्र ही सामने आने लगेंगे। यदि इस्लामी कानून विश्व के किसी भाग में भी लागू हो जाए, चाहे अमरीका हो, अथवा यूरोप, मानव समाज को राहत की साँस मिलेगी। हिजाब स्त्री के सम्मान और प्रतिष्ठा को कम नहीं करता वरन् इससे तो स्त्री का सम्मान बढ़ता है। पर्दा महिलाओं की इज़्ज़त और नारित्व की सुरक्षा करता है।
‘‘हमारे देश भारत में प्रगति और ज्ञान के विकास के नाम पर समाज में फै़शन, नग्नता और स्वेच्छाचार बढ़ा है, पश्चिमी संस्कृति का प्रसार टी.वी और सिनेमा आदि के प्रभाव से जितनी नग्नता और स्वच्छन्दता बढ़ी है उससे न केवल हिन्दू समाज का संभ्रांत वर्ग बल्कि मुसलमानों का भी एक पढ़ा लिखा ख़ुशहाल तब्क़ा बुरी तरह प्रभावित हुआ है। आज़ादी और प्रगतिशीलता के नाम पर परंपरागत भारतीय समाज की मान्यताएं अस्त-व्यस्त हो रही हैं, अन्य अपराधों के अतिरिक्त बलात्कार की घटनाओं में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। चूंकि हमारे देश का दण्डविघान पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है अतः इसमें भी स्त्री-पुरूष को स्चेच्छा और आपसी सहमति से दुष्कर्म करने को दण्डनीय अपराध नहीं माना जाता, भारतीय कानून में बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की सज़ा भी कुछ वर्षों की कैद से अधिक नहीं है तथा न्याय प्रक्रिया इतनी विचित्र और जटिल है कि बहुत कम अपराधियों को दण्ड मिल पाता है। इस प्रकार के अमानवीय अपराधों को मानव समाज से केवल इस्लामी कानून द्वारा ही रोका जा सकता है। इस संदर्भ में इस्लाम और मुसलमानों के कट्टर विरोधी भाजपा नेता श्री लाल कृष्ण आडवानी ने बलात्कार के अपराधियों को मृत्यु दण्ड देने का सुझाव जिस प्रकार दिया है उस से यही सन्देश मिलता है कि इस्लामी कानून क्रूरता और निर्दयता पर नहीं बल्कि स्वाभाविक न्याय पर आधारित है। यही नहीं केवल इस्लामी शरीअत के उसूल ही प्रगति के नाम पर विनाश के गर्त में गिरती जा रही मानवता को तबाह होने से बचा सकते हैं।’’ (अनुवादक)

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