पहली बात कोई मुसलमान मास खाए बिना भी एक अच्छा मुस्लमान रह सकता है। मॉस खाना इस्लाम मैं फ़र्ज़ नहीं है।
लेकिन
अल्लाह तालहा ने फ़रमाया है कुरआन में सूरा माइदा में:-
(सूरा नम्बर 5 आयत नम्बर 1) ''
हमने चार पैर वाले जानवर बनाये हैं तुम्हारे खाने के लिए ,सिर्फ वह जानवर मत खाओ जिनको हमने मना किया है। जो जानवर खाने में हराम हैं वह मत खाओ।
इसी तरह सूरा नहल (सूरा नम्बर 16 आयत नम्बर 5)
में अल्लाह तालह फरमाते हैं हमने भेड़ -बकरियाँ बनाई आप उनका गोश्त खा सकते हो .
इसके अलावा भी कई आयाते हैं।
अब जवाब उनके लिए जो भाई इसको विज्ञान के तर्क से परखना चाहेंगे
01.आज का विज्ञानं यह कहता है कि इंसान को जिंदा रहने के लिए तकरीबन 22 तरह के अमीनो एसिड की ज़रुरत पड़ती है .
जिनमे से 8 अमीनो एसिड हमारे जिस्म मैं पैदा नहीं होते हैं।इनको बहार के खाने से ही लिया जा सकता है।और किसी भी शाक -सब्जी में यह 8 के 8 अमीनो एसिड नहीं मिलते हैं।लकिन यह 8 के 8 एमिनो एसिड मॉस और मछली में होते हैं
02. दूसरी बात जो जानवर शाकाहारी हैं उनके दात चपटे होते हैं (herbivorous flat teeth). वह जानवर सिर्फ घास -फूस खा सकते हैं मॉस नहीं खा सकते हैं।
अब आप उन जानवरों को देखो जो सिर्फ मॉस खाते हैं घास-फूस नहीं खाते हैं।उनके दात नुकीले होते हैं (set of pointed teeth) वह सिर्फ मॉस खा सकते हैं घास-फूस नहीं खा सकते हैं।
03.अब आप ज़रा अपने (ह्यूमन )दात देखो .....यह चपटे भी हैं और नुकीले भी। अगर अल्लाह तालह चाहते की इंसान सिर्फ शाक -सब्जी ही खाए तो यह नुकीले दात इंसान को अल्ल्लाह ने क्यों दिए ?
04. अब ज़रा शाकाहारी जानवरों की पाचन क्रिया (digestive system) को देखो उनका पाचन तंत्र ऐसा है की सिर्फ घास-फूस ही हज़म कर सकते हैं मॉस हज़म नहीं कर सकते हैं।
05. अब उन जानवरों का पाचन तंत्र (digestive system) देखो जो मासंहरी हैं
उनका पाचन तंत्र सिर्फ मॉस को ही हज़म कर सकता है .घास-फूस हज़म नहीं कर सकता।
06.अब ज़रा अपना (ह्यूमन )पाचन तंत्र (digestive system) देखो यह शाक सब्जी भी हज़म कर लेता है आसानी से और मॉस भी अगर अल्लाह तालह चाहते की इंसान सिर्फ शक- सब्जी ही खाए तो फिर ऐसा पाचन तंत्र क्यों दिया ?
हमारे कुछ भाई यह समझते हैं की हिन्दू धर्म में मॉस खाना हराम हैं।
अगर आप पढेंगे हिन्दू धर्म की किताब ''मनुस्मरती '' अध्याय नम्बर 5, शलोक नम्बर 30 तो उसमे लिखा है की
''भगवान् ने कुछ जानवर को खाने के लिए बनाया है और कुछ को खा जाने के लिए ''
अगर आप उन जानवरों को खाते हैं जो भगवान् ने खाने के लिए बनाये हैं तो आप कोई पाप नहीं करते हैं।
अगले शलोक मैं लिखा है मनुस्मरती अध्याय नम्बर 5, शलोक नम्बर 31 में की अगर आप जानवर का कत्ल पूजा के लिए करते हैं तो आप कोई गुनाह नहीं कर रहे हैं
इसी तरह से मनुस्मरती में आगे लिखा है अध्याय नम्बर 5, शलोक
नम्बर 39-40 में की भगवान् ने कुछ जानवरों को बनाया है कुर्बानी के लिए इनकी क़ुरबानी दी जा सकती है और इनको खाया जा सकता है।
इसके अलावा ऋग वेद (Book no.10 Hymn no.85, vol.13)
में लिखा है की आप भैस भी खा सकते हैं।
अब ज़रा महाभारत से देखते हैं (जिसको हमारे हिन्दू भाई सबसे ज्यादह पढ़ते हैं )-
''महाभारत '' 'अनुशासन पर्व' अध्याय नम्बर 88 में पांडव के सबसे बड़े भाई यूधिस्टर भीष्म से कहते हैं की हम 'यग' में क्या देंगे की हमारे पूर्वज (पूरखे ) सदा के लिए संतुष्ट रहे ?
भीष्म जवाब देते हैं की अगर आप शाक -सब्जी ,फल देंगे तो हमारे पूर्वज एक महीने तक संतुष्ट रहेंगे . अगर आप मछली देंगे तो दो महीने तक ,अगर गोश्त देंगे तो तीन महीने तक ,खरगोश देंगे तो चार महीने तक ,बकरी देंगे तो पांच महीने तक ,हिरन देंगे तो आठ महीने तक ,इसी तरह से अगर आप भैस देंगे तो ग्यारह महीने तक और अगर गाए देंगे तो पूरे एक साल तक संतुष्ट रहंगे .
अब आते हैं की ''जीव हत्या पाप है'' पर _ _
पहले जब साइंस इतनी एडवांस नहीं थी तब लोग मानते थे की जीव हत्या पाप है .
जबकि आज की साइंस यह बता चुकी है की पेड़ पौधों में भी जान होती है (गज़ब बात यह है की इसको हमारे देश के के महान वैज्ञानिक स्वर्गीय जगदीश चन्द्र बोस ने ही सबसे पहले साबित किया था .... )
तब लोगो ने अपना लॉजिक थोडा सा बदल दिया और कहने लगे हम जानते हैं की पेड़ -पौधों में जान होती है लकिन वह दर्द का एहसास नहीं कर सकते हैं।
तब जगदीश चन्द्र बोस ने एक यन्त्र बनाया ''क्रेस्कोग्राफ'' जिस से यह साबित किया की पेड़-पौधे हँसते भी हैं और रोते भी हैं उनको दर्द का एहसास भी होता है। .....
यह एक अलग बात है की जब पेड़- पौधे हँसते या रोते हैं तो उनकी आवाज़ हम नहीं सुन पाते हैं क्यूंकि इंसान 20 साइकिल पर सेकेंड(cycles per second) से लेकर 20 हज़ार साइकिल पर सेकेंड तक की ही आवाज़ सुन सकता है।(frequency range for humans)
न इस रेंज से उपर सुन सकता है और न ही इस रेंज से नीचे।
इसके अलावा भी कई सारे वैज्ञानिक कारन है यह साबित करने के लिए की खाने के लिए जीव हत्या पाप नहीं है
मैं सोचता हूँ की इतना काफी है यह बताने के लिए की अगर आप खाने के लिए जीव हत्या करते हैं तो वह पाप नहीं है
अगर कोई सोचता है की वह बिना जीव हत्या किए जिंदा है उसको ''Psychiatre'' की ज़रुरत है ...
अगर कोई इस्लाम को जानना चाहता हैं तो उसे कुरान पढ़ना ज़रूरी है । न की मुसलमानों को देखना ...Thanks for reading
Usman Khan.
Advisory member
Q-Comic Book Preservation Project(USA)
लेकिन
अल्लाह तालहा ने फ़रमाया है कुरआन में सूरा माइदा में:-
(सूरा नम्बर 5 आयत नम्बर 1) ''
हमने चार पैर वाले जानवर बनाये हैं तुम्हारे खाने के लिए ,सिर्फ वह जानवर मत खाओ जिनको हमने मना किया है। जो जानवर खाने में हराम हैं वह मत खाओ।
इसी तरह सूरा नहल (सूरा नम्बर 16 आयत नम्बर 5)
में अल्लाह तालह फरमाते हैं हमने भेड़ -बकरियाँ बनाई आप उनका गोश्त खा सकते हो .
इसके अलावा भी कई आयाते हैं।
अब जवाब उनके लिए जो भाई इसको विज्ञान के तर्क से परखना चाहेंगे
01.आज का विज्ञानं यह कहता है कि इंसान को जिंदा रहने के लिए तकरीबन 22 तरह के अमीनो एसिड की ज़रुरत पड़ती है .
जिनमे से 8 अमीनो एसिड हमारे जिस्म मैं पैदा नहीं होते हैं।इनको बहार के खाने से ही लिया जा सकता है।और किसी भी शाक -सब्जी में यह 8 के 8 अमीनो एसिड नहीं मिलते हैं।लकिन यह 8 के 8 एमिनो एसिड मॉस और मछली में होते हैं
02. दूसरी बात जो जानवर शाकाहारी हैं उनके दात चपटे होते हैं (herbivorous flat teeth). वह जानवर सिर्फ घास -फूस खा सकते हैं मॉस नहीं खा सकते हैं।
अब आप उन जानवरों को देखो जो सिर्फ मॉस खाते हैं घास-फूस नहीं खाते हैं।उनके दात नुकीले होते हैं (set of pointed teeth) वह सिर्फ मॉस खा सकते हैं घास-फूस नहीं खा सकते हैं।
03.अब आप ज़रा अपने (ह्यूमन )दात देखो .....यह चपटे भी हैं और नुकीले भी। अगर अल्लाह तालह चाहते की इंसान सिर्फ शाक -सब्जी ही खाए तो यह नुकीले दात इंसान को अल्ल्लाह ने क्यों दिए ?
04. अब ज़रा शाकाहारी जानवरों की पाचन क्रिया (digestive system) को देखो उनका पाचन तंत्र ऐसा है की सिर्फ घास-फूस ही हज़म कर सकते हैं मॉस हज़म नहीं कर सकते हैं।
05. अब उन जानवरों का पाचन तंत्र (digestive system) देखो जो मासंहरी हैं
उनका पाचन तंत्र सिर्फ मॉस को ही हज़म कर सकता है .घास-फूस हज़म नहीं कर सकता।
06.अब ज़रा अपना (ह्यूमन )पाचन तंत्र (digestive system) देखो यह शाक सब्जी भी हज़म कर लेता है आसानी से और मॉस भी अगर अल्लाह तालह चाहते की इंसान सिर्फ शक- सब्जी ही खाए तो फिर ऐसा पाचन तंत्र क्यों दिया ?
हमारे कुछ भाई यह समझते हैं की हिन्दू धर्म में मॉस खाना हराम हैं।
अगर आप पढेंगे हिन्दू धर्म की किताब ''मनुस्मरती '' अध्याय नम्बर 5, शलोक नम्बर 30 तो उसमे लिखा है की
''भगवान् ने कुछ जानवर को खाने के लिए बनाया है और कुछ को खा जाने के लिए ''
अगर आप उन जानवरों को खाते हैं जो भगवान् ने खाने के लिए बनाये हैं तो आप कोई पाप नहीं करते हैं।
अगले शलोक मैं लिखा है मनुस्मरती अध्याय नम्बर 5, शलोक नम्बर 31 में की अगर आप जानवर का कत्ल पूजा के लिए करते हैं तो आप कोई गुनाह नहीं कर रहे हैं
इसी तरह से मनुस्मरती में आगे लिखा है अध्याय नम्बर 5, शलोक
नम्बर 39-40 में की भगवान् ने कुछ जानवरों को बनाया है कुर्बानी के लिए इनकी क़ुरबानी दी जा सकती है और इनको खाया जा सकता है।
इसके अलावा ऋग वेद (Book no.10 Hymn no.85, vol.13)
में लिखा है की आप भैस भी खा सकते हैं।
अब ज़रा महाभारत से देखते हैं (जिसको हमारे हिन्दू भाई सबसे ज्यादह पढ़ते हैं )-
''महाभारत '' 'अनुशासन पर्व' अध्याय नम्बर 88 में पांडव के सबसे बड़े भाई यूधिस्टर भीष्म से कहते हैं की हम 'यग' में क्या देंगे की हमारे पूर्वज (पूरखे ) सदा के लिए संतुष्ट रहे ?
भीष्म जवाब देते हैं की अगर आप शाक -सब्जी ,फल देंगे तो हमारे पूर्वज एक महीने तक संतुष्ट रहेंगे . अगर आप मछली देंगे तो दो महीने तक ,अगर गोश्त देंगे तो तीन महीने तक ,खरगोश देंगे तो चार महीने तक ,बकरी देंगे तो पांच महीने तक ,हिरन देंगे तो आठ महीने तक ,इसी तरह से अगर आप भैस देंगे तो ग्यारह महीने तक और अगर गाए देंगे तो पूरे एक साल तक संतुष्ट रहंगे .
अब आते हैं की ''जीव हत्या पाप है'' पर _ _
पहले जब साइंस इतनी एडवांस नहीं थी तब लोग मानते थे की जीव हत्या पाप है .
जबकि आज की साइंस यह बता चुकी है की पेड़ पौधों में भी जान होती है (गज़ब बात यह है की इसको हमारे देश के के महान वैज्ञानिक स्वर्गीय जगदीश चन्द्र बोस ने ही सबसे पहले साबित किया था .... )
तब लोगो ने अपना लॉजिक थोडा सा बदल दिया और कहने लगे हम जानते हैं की पेड़ -पौधों में जान होती है लकिन वह दर्द का एहसास नहीं कर सकते हैं।
तब जगदीश चन्द्र बोस ने एक यन्त्र बनाया ''क्रेस्कोग्राफ'' जिस से यह साबित किया की पेड़-पौधे हँसते भी हैं और रोते भी हैं उनको दर्द का एहसास भी होता है। .....
यह एक अलग बात है की जब पेड़- पौधे हँसते या रोते हैं तो उनकी आवाज़ हम नहीं सुन पाते हैं क्यूंकि इंसान 20 साइकिल पर सेकेंड(cycles per second) से लेकर 20 हज़ार साइकिल पर सेकेंड तक की ही आवाज़ सुन सकता है।(frequency range for humans)
न इस रेंज से उपर सुन सकता है और न ही इस रेंज से नीचे।
इसके अलावा भी कई सारे वैज्ञानिक कारन है यह साबित करने के लिए की खाने के लिए जीव हत्या पाप नहीं है
मैं सोचता हूँ की इतना काफी है यह बताने के लिए की अगर आप खाने के लिए जीव हत्या करते हैं तो वह पाप नहीं है
अगर कोई सोचता है की वह बिना जीव हत्या किए जिंदा है उसको ''Psychiatre'' की ज़रुरत है ...
अगर कोई इस्लाम को जानना चाहता हैं तो उसे कुरान पढ़ना ज़रूरी है । न की मुसलमानों को देखना ...Thanks for reading
Usman Khan.
Advisory member
Q-Comic Book Preservation Project(USA)
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